Friday, August 25, 2017

SUBODH _Ved Vivechan




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Our ex primeminister Dr Manmohan Singh a great economist, carried a reputation of not a very articulate public speaker.
In the new cabinet of PM Narendra Modi ji, mediamade an issue of the fact that many of those picked as ministers had excellent TV media exposure being one of their main recommendation.
Our media persons may think as they may, but it is very significant as to what Rig Veda has to say about the importance of goodspeaking ability.
 Human speech RV10.125,reiterated as  AV4.30
ऋषि:- अथर्वा, देवता:- वाक 
1.अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चराम्यहमादित्यैरुत  विश्वदेव्यैः!
अहं मित्रावरुणोभा बिभर्यमिंद्राग्नी अहमश्विनोभा !!
अथर्व 4.30.1,ऋ10.125.1
 मैं वाक  शक्ति पृथिवी के आठ वसुओं ग्यारह प्राण.आदित्यै बारह मासोंविश्वेदेवाः ऋतुओं और मित्रा वरुणा दिन और  रात द्यौलोक और भूलोक सब को  धारण करती हूं. मानव सम्पूर्ण विश्व पर वाक शक्ति  के  सामर्थ्य  से ही अपना कार्य क्षेत्र स्थापित करता है)  
2. अहं  राष्ट्री सङ्गमनी  वसूनां चिकितुषो प्रथमा यज्ञियानाम्‌!
तां मा  देवा व्यदधुः पुरुत्रा भूरिस्थात्रां भूर्यावेशयंतः!!
अथर्व 4.30.2 ऋ10.125.3
मैं (वाक शक्ति) जगद्रूप राष्ट्र  की स्वामिनी हो कर धन प्रदान करने वाली हूँ , सब वसुओं को मिला कर सृष्टि का सामंजस्य  बनाये रख कर सब को ज्ञान देने वाली हूँ. यज्ञ द्वारा सब देवों मे अग्रगण्य हूँ. अनेक स्थानों पर अनेक रूप से प्रतिष्ठित रहती हूँ.

3.अहमेव स्वयमिदं वदामि जुष्टं देवानामुत मानुषाणाम्‌ !
तं तमुग्रं  कृणोमि तं  ब्रह्माणं तमृषिं तं सुमेधाम्‌ !!
अथर्व 4.30.3ऋ10.125.5
संसार में जो भी ज्ञान है देवत्व धारण करने पर मनुष्यों में उस दैवीय ज्ञान  का प्रकाश मैं (वाक शक्ति) ही करती हूँ. मेरे द्वारा ही मनुष्यों  में क्षत्रिय स्वभाव  की उग्रताऋषियों जैसा ब्राह्मण्त्व और मेधा स्थापित  होती है.

4.मया सोSन्नमत्ति यो  विपश्यति यः प्रणीति य ईं शृणोत्युक्तम्‌ !
अमन्तवो मां    उप  क्षियन्ति श्रुधि श्रुत श्रद्धेयं ते वदामि !!अथर्व 4.30.4ऋ10.125.4
मेरे द्वारा ही अन्न प्राप्ति के साधन  बनते  हैं , जो भी कुछ कहा जाता हैसुना जाता हैदेखा  जाता हैमुझे  श्रद्धा से ध्यान देने से ही प्राप्त  होता है. जो मेरी उपेक्षा करते  हैं , मुझे अनसुनी कर देते हैंवे अपना विनाश कर लेते हैं.
5.अहं रुद्राय धनुरा  तनोमि  ब्रह्मद्विशे  शरवे हन्तवा   !
अहं  जनाय सुमदं कृणोभ्यहं द्यावापृथिवी आ विवेश !!
अथर्व 4.30.5ऋ10.125.6
असमाजिक दुष्कर्मा शक्तियों के विरुद्ध संग्राम की भूमिका मेरे द्वारा ही स्थापित  होती है. पार्थिव जीवन मे विवादों  के  निराकरण से मेरे द्वारा ही शांति स्थापित होती है.

6. अहं सोममाहनसं  विभर्यहं त्वष्टारमुत पूषणं भगम्‌ !
अहं दधामि  द्रविणा हविष्मते सुप्राव्या3 यजमानाय  सुन्वते !!
अथर्व 4.30.6 ऋ10.125,2
श्रमउद्योगकृषिद्वारा  जीवन में आनंद के साधन मेरे द्वारा ही सम्भव  होते हैं . जो  धन धान्य से भर पोर्र समृद्धि प्रदान करते  हैं.
7. अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम योनिरप्स्व1न्तः समुद्रे !
ततो वि तिष्ठे भुवनानि विश्वोतामूं द्यां वर्ष्मणोप स्पृश्यामि !!
अथर्व 4.30.7ऋ10.125.7
मैं अंतःकरण में गर्भावस्था से ही पूर्वजन्मों के संस्कारों का अपार समुद्र ले कर मनुष्य के मस्तिष्क में स्थापित होती हूँ  पृथ्वी  तथा द्युलोक के भुवनों तक स्थापित होती हूँ.
8.अहमेव वात इव प्र वाम्यारभमाणा  भुवनानि विश्वा !
परो  दिवा पर एना पृथिव्यैतावती महिम्ना सं बभूव!!
अथर्व 4.30.8 ऋ 10.125.8
मैं ही सब भुवनों पृथ्वी के परे द्युलोक तक वायु के समान फैल कर अपने मह्त्व को विशाल होता देखती हूँ

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हिंदु कौन है वेदों  के अनुसार –जिस के राष्ट्र में गौ की रक्षा होती है  
हिङ्कृण्वती वसुपत्नी वसुनां वत्समिच्छन्ती मनसा न्यागन्‌।
दुहाम्श्विभ्यां पयो अघ्न्येयं सा वर्धतां महते सौभगाय।। अथर्व 7.77.8
 श्रेष्ठ धनों  को पुष्ट  करने  वाली गौ हृदय से बछड़े   की कामना करती हुई हिं हिं  कर के रंभाती हुई नित्य  आवे । यह कभी  न मारने योग्य गोमाता अश्वियों  के लिए भी दूध का दोहन कराए. वह (गोमाता) हमारे महान  सौभाग्य के लिए वृद्धि को प्राप्त हो.
·               अनाथ घोड़े  के बच्चों को  गाय के  दूध पर पाले जाने  की भारतीय  प्रथा  आज भी विश्व में प्रचलित है
·               इस वेद मंत्र में गोपालन और गोसम्वर्धन को  मानव  जाति की समृद्धि और सौभाग्य का मूल मंत्र बताते  हुए हिन्दु जाति के नाम निर्देशपूर्वक उस की विशेषताओं का भी वर्णन किया गया है. मूल मंत्र के दोनों पादों के प्रथम अक्षरों से प्रत्याहार प्रणाली से हिन्दु शब्द की निष्पत्ति हुई हैऋचा संकेतदेती है कि हिन्दु वह है जिस के  आंगन में हिं हिं करती हुई सवत्सा गाय  यज्ञादिदेवकार्य के लिए दुहीजाती है और जिस के (हिन्दु के) शासन में जिस के देश तथा राज्य में गौ अघन्या बन कर निरंतर फूलती फलती है. जहां गो रक्षण होता है वह राष्ट्र सर्वदा सौभाग्य और समृद्धि को  पाता है. 
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Mind Control  RV10.58  ऋषि: -  बन्धु: श्रुतबन्धुविप्रबन्धुर्गौपायना:;  बन्धु बध्नातिइति बंधु: जो बांधता है वह बंधु है . जिस को बांधना सब से कठिन है उस को जो बांधता है वह सच में बंधु है. किस का बांधना सब से कठिन है? मन का. जो मन को  बांधता है, इधर उधर नहीं भतकने नहीं देता वह बंधु है . श्रुतबंधु वह बंधु जिस ने श्रुतियों- वेदों  वेदों के  ज्ञान से  विप्र बन्धु अपने को विद्वान बंधु बनाया.गोप कहते हैं इंद्रियों को ,इंद्रियों का पालन करनेवाला गोपायन कहलाया. इस प्रकार मन को बांध लेने से इंद्रियों के व्यर्थ इधर उधर्भटकने से रोकने वाला -  बन्धु: श्रुतबन्धुविप्रबन्धुर्गौपायना: ऋषि कहलाया.      

 देवता: -  मनआवर्तनं । छंद: -अनुष्टुप् ।

Refrain ध्रुवपंक्ति .मनो जगाम दूरकम्‌ , त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे !!

Live in the Present  - Be focused in Life for its betterment

जो तुम्हारा मन बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

A life positive attitude

1.यत ते यमं वैवस्वतं मनो जगाम दूरकम्‌ तत त आवर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || R10.58.1
Develop life positive attitude, Do not turn away from life, Be focused in Life for its betterment

तुम्हारा जो मन वैवस्त के पुत्र यम के पास चला गया है,अर्थात वैराग्य की ओर बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

(विवस्वान है वासना रहित व्यक्तित्व मनुष्य वासनाओं से जितना ऊपर उठता है उतना ही उसका जीवात्मा और अहंबुद्धि  संयमशील होता  हैं . और क्रमशः यम और यमी कहलाने के अधिकरी होते हैं. यम संयम शील जीवात्मा है और  यमी उसकी बहन संयम शील अहंबुद्धि है. बच्चा जब माता के गर्भ से पैदा होता है तो उस  के शरीर में  जीव और अहंबुद्धि  साथ साथ  जन्मते हैं. इसी लिए यम और यमी को  जुडवां कहा जाता है. अतः यम और यमी वस्तुतः वासना रहित व्यक्तित्व की दो संतानें हैं. ये दोनों शकट(हविर्धान) अर्थात सोम ढोने वाली गाडियों के रूप में भी देखे जाते  हैं . यम देवों के हित में मृत्यु का वरण करता है. पर संतान के अभीष्ट के लिए अमृत को त्याग देता है.)

2. यत ते दिवं यत्पृथ्वीं   मनो जगाम दूरकम तत्‌  त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.2
Do not indulge in day dreaming. Be focused in Life for its betterment.

Day dreaming: जो तेरा मन दिवास्वप्न की ओर बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

 

 

 

Pessimism - seeing difficulties all-round3. यत ते भूमिं चतुर्भृष्टिं मनो जगाम दूरकम |
तत्‌  त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे || ऋ10.58.3

Your Mind due to pessimism perceives all-round difficulties in life,  turn it back  to be focused in Life for its betterment.

मन जो अवसाद से  चारों ओर से तपने वाली भूमि  की ओर बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

Wandering Mind भटकता मन

4. यत ते चतस्रः प्रदिशो मनो जगाम दूरकम तत  तत्    वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे||10.58.4

Your wandering mind that has gone very far in the four directions, bring it back to be focused in life for its betterment.

चारो दिशाओं में तुम्हारा मन  जो भटक कर  बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

5. यत ते समुद्रमर्णवं मनो जगाम दूरकम |
तत्‌  त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
 ||ऋ10.58.5

 जल से भरे  समुद्र  में जो  बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते है

क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

6. यत ते मरीचीः प्रवतो मनो जगाम दूरकम |
तत्‌  त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||
 ऋ10.58.6

 Mirage-मृग तृष्णा की ओर जो बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.


7. यत ते अपो यदोषधी  मनो जगाम दूरकम |
तत्‌  त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे
  || ऋ10.58.7

Paranoid about  diseases  भ्रमोन्माद से औषधियों वनस्पतियों में जो तुम्हारा मन  बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

8. यत ते सूर्यं यदुषसं मनो जगाम दूरकम |
तत्‌  त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||
 ऋ10.58.8

सूर्य और उषा के पास जो  बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  है

  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

9. यत ते पर्वतान बृहतो मनो जगाम दूरकम |
तत्‌  त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.9

बडे बडे पर्वतों की ओर जो  बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

10. यत ते विश्वमिदं जगन्‌ मनो जगाम दूरकम |
तत्‌  त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.10

सारे संसार की ओर जो बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

11. यत ते पराः परावतो मनो जगाम दूरकम |
तत्‌  त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||ऋ10.58.11

 दूर से  दूर और उस से भी दूर  और  भी बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

12. यत ते भूतं च भव्यं च मनो जगाम दूरकम |
तत्‌  त आ वर्तयामसीह क्षयाय जीवसे ||
 ऋ10.58.12

भूत  काल  और  भविष्य की ओर जो  बहुत दूर चला गया हैतुम्हारे उस मन को

लौटा लाते  हैं  क्योंकि तुम इस संसार  में निवास  के लिए  जीते  हो.

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RV10.67-AV-20.91 Cows (Animal Husbandry) गोसम्वर्द्धन
 अयास्य आङ्गिरस:। बृहस्पति:। त्रिष्टुप् 
Bringing out the hidden values of cows to brighten  life and environments
गौओं की अदृष्ट शक्तियों को प्रकाशमान करने से पर्यावरण का शुद्धिकरण

इमा धियं सप्त शीर्ष्णी पिता  ऋतप्रजातां बृहतीमविन्दत् 
तुरीयं स्विज्जनयद्विश्वजन्यो ऽयास्य उक्थमिन्द्राय शंसन् ।।RV10.67.1 AV-20-1,
सात प्रकार के रोगनाशक तत्व और सूर्य के प्रकाश द्वारा चार पीढ़ी वाले नातियों –तुरीयं स्विद्‌ जनयद- को नष्ट करने का प्रबंध किया.
(विज्ञान के अनुसार दही में 7 प्रकार के रोग निरोधक प्रोबायोटिक लेक्टो बसिलाइ होते हैं. गोबर गोमूत्र में सात प्रकार के कीट नाशक छिपे हैं. उसी प्रकार गोबर में चार पीढ़ी के विनाशकारी कीट भी उत्पन्न होते हैं, गौ का रक्त चूस कर गोबर में अण्डे , अण्डे से लार्वा, लार्वा से प्युपा, प्युपा से मक्खी चार र्रूप ले कर बनती है. इसी को वेद चार पीढ़ी के नाती  विनाश कारी तत्व बताता है, इन के अण्डों को 3 दिन से पहले  गोबर को काट लगा कर सूर्य के प्रकाश में सुखा कर किया जाता है.
Horn fly lives by sucking blood from cows. After their feed of blood, next they sit on cowpat. Horn Fly lays eggs in cow pats, where they hatch as maggots; grow in to pupa and from pupa they emerge as Horn Flies. Horn flies develop from the egg to adult stage within 10 to 20 days, and the adults live for about 3 weeks, feeding 20 to 30 times a day on a cow to suck its blood 20 to 30 times a day. Move on to cowpat to lay the eggs after every blood sucking.  If the cow pat is cut up and exposed to sun by spreading, the eggs get destroyed by solar radiations, and no Horn flies are born. Horn flies are known to very adversely affect health of cows and reduce milk yield by as much as 20%
The Cow dung should not be allowed to accumulate in Goshalas.
It should be collected and removed as early as possible and spread out exposed to the sun that will not allow any Horn fly eggs to hatch in to flies.
Alternatively collect all the cow dung and use it to feed the biogas digester. There will be no flies. The biogas is excellent source of fuel energy. Biogas slurry mixed with water is excellent organic fertitigation-irrigation integrated with fertilizers.
यह गोशाला के आस पास की मक्खी विशेष प्रजाति की होती है जो साधारण मक्खियों से कुछ छोटी होती है.  यदि गोबर को तीन दिन से पहले काट लगा कर धूप में सुखाया न जाए तो यही चार पीढ़ी मे गौ की विनाशकारी मक्खी बनती है.  इसे आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में Horn Fly हार्न मक्खी कहते हैं. यह दिन में 30 बार तक गौ पर बैठ कर रक्त चूसती है. इस के कारण गौओं के स्वास्थ्य और दुग्ध उत्पादन पर दुष्प्रभाव होता है. यहां तक कि दुग्ध उत्पादनमें 20% तक की गिरावट आ सकती है.)

ऋतं शंसन्त ऋजु दीध्याना दिवस्पुत्रासो असुरस्य वीरा: 
विप्रं पदमङ्गिरसो दधाना यज्ञस्य धाम प्रथमं मनन्त ।।RV10.67.2.AV-20-91-2

बुद्धिमान जन अंतरिक्ष –वायुमंडल स्थित असुरों- रोगाणुओं का नाश कर के वायुमंडल के शुद्धीकरण के लिए यज्ञ अवश्य करते हैं.
It is wise to clean the atmospheric pollution around cows by regularly performing Homa – Fumigation by burning herbs in fire.

3.हंसैरिव सखिभिर्वावदद्भिरश्मन्मयानि नहना व्यस्यन् 
बृहस्पतिरभिकनिक्रदद्गा उत प्रास्तौदुच्च विद्वाँ अगायत् ।।RV10.67.3,
AV-20-91-3

Cows are attracted by greenery of Pastures and travel far distances. But the cow owner calls them back by loud chanting of sweet melodies.
प्राकृतिक रूप से उर्वरक गोचरों ने अपने मधुर गान रूपी आकर्षण से गौओं को अपनी ओर खींचा. ऋत्विज जनों ने यज्ञ में साम गान द्वारा देवताओं का अभिनंदन किया और गौओं को पुन: गोचर से अपने सुंदर शब्दों द्वारा पुन: प्राप्त किया . ( यजु 17.1 अश्मन्नूर्जं से गोचर की ओर लक्ष्य है)


4.अवो द्वाभ्यां पर एकया गा गुहा तिष्ठन्तीरनृतस्य सेतौ 
बृहस्पतिस्तमसि ज्योतिरिच्छन्नुदुस्रा आकर्वि हि तिस्र आव: ।।RV10.67.4 ,
AV-20-91-4

         (Miserly, selfish, ignorant cattle owners may not always provide
          healthy environments for cows.) In the dark places in these
          shelters organisms that are harmful to the cows  are
         liable to be found. By keeping cows in open sunlit well
          Ventilated areas cows regain their health and productivity.  
अंधकार में पल रहे गौओं के उत्पादन को हरने वाली जीवाणुओं (हार्न मक्खी) को अंधकार से प्रकाश की ओर ला कर नष्ट किया और  गौओं को पुन: स्वास्थ्य और गोदुग्ध उत्पादन को प्राप्त किया.

5.विभिद्या पुरं शयथेमपाचीं निस्त्रीणि साकमुदधेरकृन्तत् 
बृहस्पतिरुषसं सूर्यं गामर्कं विवेद स्तनयन्निव द्यौ: ।। RV10.67.5,AV-20-91-5
Thus intelligent cow owners by providing well fumigated clean sunlit ventilated stalls, Green Pasture feeds, good and clean like rainwater for drinking has taken the cows out from darkness to light.
 बुद्धिमान गोपालक ने यज्ञ द्वारा  उषा, सूर्य और सूर्य द्वारा मेघ से मानो गौ को अंधकार से निकाल कर उजाले में स्थापित किया 

6.इन्द्रो वलं रक्षितारं दुघाना करेणेव वि चकर्ता रवेण 
स्वेदांजिभिराशिरमिच्छमानो ऽरोदयत् पणिमा गा अमुष्णात् ।।RV10.67.6 AV-20-91-6
By destroying Horn Fly & such pathogens by cutting and drying cow pats- as if actually chopping the hands of pathogens- and developing probiotics in curds and butter milk achieved the health providing nutrition.
(इस प्रकार) इन्द्र- कर्मठ गोसेवक ने जैसे गौओं की प्रगति को  बलात्‌ रोक कर रखनेवाले राक्षस – हार्न मक्खी  का – तीन दिन से पहले गोबर में काट लगा कर धूप मे सुखा कर- हाथ काट दिया हो. और ( आशिरम इच्छमान: ) दही मट्ठे की इच्छा करने वालों के लिए (स्वेदाञ्जिभि:) स्वेद से उत्पन्न- अमैथुनि जीव जो दही मट्ठे में उत्पन्न होते हैं ,उन को प्राप्त किया.


7. र्इं सत्येभि: सखिभि: शुचद्भिर्गोधायसं वि धनसैरदर्द: 
ब्रह्मणस्पतिर्वृषभिर्वराहैर्घर्मस्वेदेभिर्द्रविणं व्यानट् ।। RV10.67.7,AV-20-91-7
In this manner the solar radiations provided means to destroy the pathogens that are born in warm moist cow pats, and probiotics cultures for nutritive products from cow.
इस प्रकार स्वच्छता और समृद्धि  प्रदान करने वाले –सूर्य – की कृपा से मित्रों- पड़ोसियों की गौओं का ह्रास करने वाली मक्खियों का भी ह्रास किया. और शक्तिशाली जीवाणुओं से परिपूर्ण दही मट्ठे का भी अपने मित्र जनों के साथ उपयोग किया- भारतीय परम्परा मे अतिथियों का मट्ठे से सत्कार होता था, तथा मट्ठा मुफ्त मे बांट दिया जाता था. 


8.ते सत्येन मनसा गोपतिं गा इयानास इषणयन्त धीभि: 
बृहस्पतिर्मिथोअवद्यपेभिरुदुस्रिया असृजत स्वयुग्भि: ।।RV10.67.8, AV-20-91-8
Cows have to be treated with affections in order that they maintain their libido to desire the company of bulls for increase in their progeny.
 गौओं को प्यार करते हुए सच्चे मन से गौओं के लिए पति की कामना की जिस से बछियाओं की वृद्धि हो सके.


9.तं वर्धयन्तो मतिभि: शिवाभि: सिंहमिव नानदतं सधस्थे 
बृहस्पतिं वृषणं शूरसातौ भरेभरे अनुमदेम जिष्णुम् ।।RV10.67.9,  AV-20-91-9
Nature has blessed the bulls with strength and to roar like a lion in herd to bring prosperity by increase of progeny.
सभा स्थान में गर्जना करने वाले सिन्ह के समान प्रकृति ने शक्तिशाली
वृषभ को वीरों के साथ संग्राम में प्रसन्नता प्रदान करने के लिए उपहार दिया.


10.यदा वाजमसनयद्विश्वरूपमा द्यामरुक्षदुत्तराणि सद्म 
बृहस्पतिं वृषणं वर्धयन्तो नाना सन्तो बिभ्रतो ज्योतिरासा ।।RV10.67.10
AV20-91-10
Nature with participation of bulls, to provide the bounties of food through farming, climbs high in to the sky and showers her blessings by lightening and rains as farm products.
 ( वृषभ द्वारा कृषि विषय) जब प्रकृति विविध रूपों वाले अन्न प्रजा को देना चाहती है, तब वह मानो ऊपर अपने महल पर चढ़ जाती है और मेघ रूप से आकाश से विद्युत और ज्योति बन कर अन्न की वर्षा करती है.


11.सत्यामाशिषं कृणुता वयोधै कीरिं चिध्द्यवथ स्वेभिरेवै: 
पश्चा मृधरप भवन्तु विश्वास्तद्रोदसी शृणुतं विश्वमिन्वे ।।RV10.67.11,  AV-20-91-11
Thus by obtaining clean raw milk, and enabled organic agriculture make true the dream of long disease free life, banish all disease and obtain blessings of the environments.
इस प्रकार- स्वच्छ धारोष्णगोदुग्ध और जैविक कृषि द्वारा- दीर्घायु का आशीर्वाद सत्य बनाओ,अपनी गतियों से सब स्तोताओं की रक्षा करो. सम्पूर्ण शत्रु- रोगादि- पीछे हट जाएं, द्यावापृथिवी-पर्यावरण तुम्हारी प्रार्थना सुन कर आशीर्वाद देवें.

12.इन्द्रो मह्ना महतो अर्णवस्य वि मूर्धानमभिनदर्बुदस्य 
अहन्नहिमरिणात् सप्त सिन्धून् देवैद्र्यावापृथिवी प्रावतं नो ।।RV10.67.12,  AV-20-91-12
By large positive efforts (like Indra) the environments provide proper rains to feed all the rivers and water bodies and nature through atmosphere and earth provide humans the protection and sustenance.
महान इंद्रके रूप में  पर्यावरण ने समुद्र सदृश भरे हुए मेघ से प्रचुर वर्षा द्वारा सब नदियों को जल से तृप्त किया,द्यु और पृथिवी;देवताओं ने हमारी रक्षा की.
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Dairy concept   AV3.14
ऋषि: - ब्रह्मा देवता:-गोष्ठ:

1.सं वो गोष्ठेन सुषदा सं रय्या सं सुभूत्या ।
 अहर्जातस्य यन्नाम तेना वः सं सृजामसि  । । AV3.14.1
In the cow shelter/farm  provide  comfortable floors for the cows to sit upon. Provide them with good rich feed. Manage the cows in such a manner that the calvings mostly take place during day light.
मैं गोशाला में तुम्हारे सुखपूर्वक बैठने  का प्रबंध करता हूं,उत्तम आहार –घास दाना इत्यादि और  धन से ठीक प्रबंध करता हूं. तुम्हें सम्पन्न बनाता हूं, तुम दिन में ही बछड़े  बछियों  को जन्म देने  वाली बनो.
Dairy concept
2.  सं वः सृजत्वर्यमा सं पूषा सं बृहस्पतिः ।
 सं इन्द्रो यो धनंजयो मयि पुष्यत यद्वसु  । । AV3.14.2
Under management of an active resourceful knowledgeable entrepreneur, well versed in managing finances, and guided by the national rules and regulations for the nutrition of society and at the same time provide me with good livelihood
उत्तम विद्वान कर्मठ जो  धनादि के हिसाब में भी निपुण है द्वारा संचालित इस गोशाला में  (अर्यमा) राष्ट्र का शासनाधिकारी के नियमों का पालन  करते हुए , राष्ट्र के पोषन के करते हुए सब प्रकार के धन धान्य से मुझे पुष्ट करो.
High CLA milk and Organic Manure
3.  संजग्माना अबिभ्युषीरस्मिन्गोष्ठे करीषिणीः ।
 बिभ्रतीः सोम्यं मध्वनमीवा उपेतन  । । AV3.14.
Cows should all stay together in comfort fully protected from thieves and wild animals; in very clean sanitary conditions to provide clean healthy milk that enhances health and intellects.
While staying together their dung and waste products should be utilized for making manure.
.
 तुम यहां मिल कर चोर  व्याघ्र आदि के भय से रहित हो कर,रोग रहित स्वस्थ शरीर से उत्तम बल वीर्य और  बुद्धि वर्धक दूध प्रदान  करती हुइ , खाद के लिए  गोबर देती  रहो.
4.  इहैव गाव एतनेहो शकेव पुष्यत ।
 इहैवोत प्र जायध्वं मयि संज्ञानं अस्तु वः  । । AV3.14.4
Cow should be very well looked after in the Goshala/ Farms , they should have excellent health, enjoy very close friendly relationship with their keepers. They should multiply very fast by regular calving.
इस गोशाला में हृष्ट पुष्ट शरीर पा कर अनेक संतान बछड़े  बछिया  उत्पन्न करो .(यहां शकेव कह कर यह कहा कि जैसे  मखियों की बड़ी संख्या हो  जाती हो जाती है वैसे  तुम्हारी भी बछड़े  बछियों  की संख्या भी खूब बड़ी हो जाए ) . गोपालकों से विशेष प्रीति से एक दूसरे को पहचानने का वातावरण हो. 
Birds in Goshala
5.  शिवो वो गोष्ठो भवतु शारिशाकेव पुष्यत ।
 इहैवोत प्र जायध्वं मया वः सं सृजामसि  । । AV3.14.5
Environment in Goshala should attract birds. Presence of Birds in goshala helps to promote good health of cows. And also
 promotes healthy calving.  (This is strategy endorsed by modern veterinary practice. Birds not only clean the cows and the environments by feeding on worms etc. around, but also give the first indication of any infectious disease before it spreads to the cows)
गोशाला में  गौओं  के साथ पक्षियों  का विचरण गौओं के स्वास्थ्य में सहायक होता है और गोशाला में  पक्षी गौओं के ब्याहने  में सहायक भी  होते हैं.
6.  मया गावो गोपतिना सचध्वं अयं वो गोष्ठ इह पोषयिष्णुः ।
 रायस्पोषेण बहुला भवन्तीर्जीवा जीवन्तीरुप वः सदेम  । ।AV3.14.6
Our cows on this farm may live a happy life, grow with good  health and provide us with wealth and healthy long life.
मेरी गौएं मेरे साथ इस गोशाला में  आनंद से रहें स्वस्थ हृष्ट पुष्ट बनें । सुख से रहती हुइ हम सब को – समाज को सम्पन्न ता प्रदान करें और दीर्घायु का साधन बनें.
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Food science –Dry heat roasted grain Fermented diet
Good Food RV3.52
गाथिनो विश्वामित्र:  । इन्द्र:  । त्रिष्टुप्,1-4 गायत्री, 6 जगती ।
सूक्त विषय – महर्षि  दयानंद के अनुसार; इंद्र स्तुति प्रार्थनादि विद्या, भोजन विद्या
सात्विक शाकाहारी आहार में अनाज का बड़ा महत्व होता हैं. भारतीय  परम्परा में अनाज को सुखा भून कर सत्तू, आंच पर सेक कर आटे  की रोटी , और  खमीर  उठा कर इडली दोसा ,भटूरे, नान इत्यादि इसी श्रेणी मे आते  हैं. ऋग्बेद के इस सूत्र के अनुसार इस प्रकार के  आहार से  स्वास्थ, पौष्टिकता और मानसिक उत्साह  बना रहता है. आलस्य रहित जाग्रित अवस्था में मनुष्य काम करने में इन्द्र के गुण प्राप्त करता है.  आयुर्वेद के अनुसार भी यही अनुमोदित आदेश हैं
1.धानावन्तं करम्भिणमपूपवन्तमुक्थिनम्  इन्द्र प्रातर्जुषस्व :  ।।RV 3.52.1
Morning meal Breakfast consisting of roasted grains (such as barley , Chickpea, Corn, Pulses singly or mixed together as per taste) ground in to a flour , then  mixed with curd and  fermented with a good yeast culture starter obtained from far or near and is well talked of, to provide the vigorous nutrition (to start the day) is fit for Indra. ( In a way South Indian dishes of Idli and Dosa can be seen as breakfast meals in this Vedic tradition)
 Sattu is a grounded roasted powder of soaked pulses and cereals. It is consumed along with fruit slices, gur or milk. Green chili, lemon juice and salt can be added to add flavor.
The commonest form of sattu is grounded roasted black gram or chana. Other common variety is grounded roasted black gram with barley.
Originally, sattu was made of seven Anaja (7 cereals, millets and pulses). The seven ingredients are maize and barley (cereals), black gram, pigeon gram or Arhar, green pea, khesari daal and kulath daal (pulses).
Sattu is a high fiber diet with low sugar producing properties. It is a cooling and refreshing fast food with anti diabetic and anti–obesity properties.
It is a full breakfast, mid day or lunch meal and has minerals and vitamins.
Sattu drink can be sweetened by adding gur or honey, sour by adding lemon and salted by adding black or rock salt. Roasting is one of the best forms of cooking. Sattu is both a fast food and a summer fast soft drink but healthy.

सत्तू (भुने जौचने,मक्का, दालों  का आटा) और किसी बहु चर्चित से समीप से अथवा दूर से प्राप्त, जामन से जमाया  गया दही प्रात: कालीन  पौष्टिक आहार  इंद्र के लिए उपयुक्त है. 
(करम्भ Fermented food is considered the healthiest by modern nutrition science also. के बारे में वैज्ञानिक उपदेश यजुर्वेद में इस प्रकार से मिलता है. “ प्रघासिनो हवामहे मरुतश्च रिशादस: ।  करम्भेण सुजोषस: ।। यजु 344 -प्रघासिनो Voracious eaters of (cooked) food हवामहे-we exult in glorifying मरुतश्च-the maruts the microorganisms रिशादस:-destroyers of enemies --killers of pathogens by antibodies to    create health giving probiotics करम्भेण-by mixture of curd with roasted barley/oat flour --Yeast as starter सजोषस:-with vigour-)


2.पुरोळाशं पचत्यं जुषस्वेन्द्रा गुरस्व   तुभ्यं हव्यानि सिस्रते ।।RV 3.52.2
Well cooked rich food preparations are fit for offering to Gods, and then should be partaken. (This tradition is seen in performing of बलिवैश्वदेव यज्ञ  and also the offering of all well prepared tasty dishes first to Gods for भोग and then only the food is considered fit for humans to partake.
(भगवान कृष्ण  के लिए  56 भोग is a very famous tradition that has preserved Indian culinary expertise over the centuries. )

Dining Ambience
3.पुरोळाशं  नो घसो जोषयासे गिरश्च  वधूयुरिव योषणाम्।।RV3.52.3
The food offered before you, should be accompanied by pleasant ambience consisting of good conversation and homely atmosphere as prevails at festive occasion of a wedding reception. (Excellent ambience is a very famous management practice in all of the best catering and dining halls)  
उत्तम भोजन प्रस्तुत हो, भोजन के स्थान पर प्रीति पूर्वक सुख दायक एक नव विवाहिता के प्रीति भोज के स्वागत जैसा वातावरण हो .

4.पुरोळाशं सनश्रुत प्रात:सावे जुषस्व  इन्द्र क्रतुर्हि ते बृहन् ।।RV 3.52.4
Take guidance from experienced learned persons (nutrition experts) to start your day by eating breakfast that promotes health and leaves you with an active frame of my mind. ‘Breakfast should be the King of meals’ – is a very famous saying.
विद्वत्जनों की सलाह से प्रात: काल  ऐसा पौष्टिक नाश्ता करो  जो बुद्धि और उत्साह  वर्धक हो. (सुस्ती न लाए )


5.माध्यंदिनस्य सवनस्य धानापुरोळाशमिन्द्र कृष्वेह चारुम् 
प्र यत् स्तोता जरिता तूर्ण्यर्थो वृषायमाण उप गीर्भिरीट्टे  ।।RV3.52.5
Lunch should be light, not heavy to digest, and should consist of roasted grains made in to especially delicious preparations. And these should be consumed by chewing well  in to a liquid form for being easily digestible to provide you with good health and make one a pleasant personality in society.– At lunch time one is likely  to be at work place  and is also expected to be agile in actions and alert in mental activities. While actively engaged in work and thus needs to be not only in good health but also alert.
.-  (In case of eating of fast eating and eating not well cooked and unwholesome food, indigestion leads to bad health and dyspepsia and deprives one of being a peasant company.)  
दोपहर के भोजन में ठीक से भुने हए अन्न के स्वादिष्ट व्यंजन और अल्पाहार होना चाहिए.  जिन्हें  खूब चबा कर खाना चाहिए. स्वस्थ और चैतन्य रहें (काम के समय) नींद न आ रही हो .(कहावत है कि  अन्न को खूब  चबा चबा कर जल की तरह पीओ और जल को  धीरे धीरे खावो. )  जिस से अपच न हो. डकारें लेते हुए तथा दुर्गंधित अपान वायु के कारण  समाज में बैठ कर अच्छी संगती न हो.    

6.तृतीये धानासवने पुरुष्टुत पुरोळाशमाहुतं मामहस्व :  
ऋभुमन्तं वाजवन्तं त्वा कवे प्रयस्वन्त उप शिक्षेम धीतिभि:  ।।RV3.52.6


सायं काल में बहुतों से प्रशंसित अत्यंत सत्कार के योग्य गुण लिए भुने हुए धान और  उत्तम शिक्षित बुद्धि से प्रेरित  (ऋभुमन्तं ) सूर्य के किरणों से उपचारित (वाजवन्तं) शुष्क अन्न विशेष जो अत्यंत पौष्टिक होता है उस का प्रथम यज्ञाग्नि  में आहुति दें और पश्चात आहार में उस का सेवन करें.
(प्राचीन परम्परा में  पर्वतीय क्षेत्रों में जहां शीत काल  में धूप सेवन करने के लिए कम मिलती है  ग्रीष्म काल  में फलों  सबज़ियों को  धूप  मे सुखा कर रखते  हैं  और इच्छानुसार  उन को  आहार  में शीत  काल  में लाते  हैं. काश्मीर  की गुच्छी तो विश्व में प्रसिद्ध एक बहुमूल्य  खाद्य  पदार्थ  है.  आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान द्वारा यह  पाया गया  है कि मशरूम को धूप  में सुखाने से उस में विटामिन डी की मात्रा इतनी बढ़  जाती  है कि वैज्ञानिकों ने इसे एक  विटामिन डी  का बम  बताया-Mushroom when dried in SUN becomes literally a BOMB of vitamin D- प्राचीन भारत  की जीवन शैली के पीछे इसी प्रकार  के  वैज्ञानिक रहस्य  छिपें हैं , जिन का हमारे  ऋषियों ने वेदों में  ज्ञान मानव के लिए दिया था. समय के चलते भारतीय  जीवन दर्शन में यह सब ज्ञान प्रयोग में आता रहा.परंतु वेदों  के स्वाध्याय की परम्परा के  लोप हो जाने से भारतीय  जीवन पद्धति के  मूल में  क्या वैज्ञानिक रहस्य थे इस का ज्ञान नहीं रहा. और  पाश्चात्य  शिक्षित लोग भारतीय  जीवन शैली को एक अंधविश्वास  पर आधारित पिछड़ा  मान कर विदेशी जीवन शैली का आचरण  करने लगे हैं. )   

7.पूषण्वते ते चकृमा करम्भं हरिवते हर्यश्वाय धाना:  
अपूपमध्दि सगणो मरुद्भिसोमं पिब वृत्रहा शूर विद्वान्  ।।RV3.52.7
उत्तम पौष्टिकता के लिए उत्तम अश्व जैसी शक्ति के लिए सत्तू में खमीर उठा कर पुआ –चीला -दोसा  बनाएं .यह सगणो मरुद्भि सूक्ष्माणुओ probiotic द्वारा शूरवीर और विद्वान सब विघ्न  बाधाओं  पर विजय  प्राप्त करने  में सक्षम  बनाता है.

8.प्रति धाना भरत तूयमस्मै पुरोळाशं वीरतमाय नृणाम् 
         दिवेदिवे सदृशीरिन्द्र तुभ्यं वर्धन्तु त्वा सोमपेयाय धृष्णो  ।।RV3.52.8
         सब जीवों के लिए भुने जौ –सत्तू इत्यादि का सात्विक आहार यज्ञ शेष के रूप में सर्वदा
        उपलब्ध रहे अर्थात ( सब को पहल खिला कर जो बचे उसी  का सेवन करें)  . इस प्रकार का
       आहार जो  सोम की वृद्धि करता है वह  सात्विक  आहार ही है, जो  शरीर को  शक्ति  प्रदान
        करता है ,सात्विक  आहार द्वारा उत्पन्न सात्विक  वृत्ति ही शत्रुओं विघ्न  बाधाओं  पर  इन्द्र
       के समान सदैव विजयी होने  की क्षमता प्रदान करता है.
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Brahm Gavi AV  12.5.
राज्य में  गौ ही प्रजा का प्रतीक है. जिस प्रकार गो हत्या एक राज्य को नष्ट कर देती हैउसी प्रकार प्रजा को असहाय मूक गाय के समान समझना भी राजा की सब से बड़ी भूल  है.
ब्रह्मगवी = के दो  तात्पर्य हैं - परमेश्वर द्वारा प्रदान की हुइ गौ तथा ब्राह्मण की वाणी अर्थात प्रबुद्ध विद्वान जनों का मंतव्य इस प्रकार गौ ही प्रजातंत्र का प्रतीक है
Brahm gavi = Stands for both cow the  gift from Almighty and the sane voice of learned persons.
 Cow itself symbolizes ultimate Democracy.Treating people as helpless & meek just like a cow can prove suicidal for a nation.
1.  श्रमेण तपसा सृष्टा ब्रह्मणा वित्ता र्ते श्रिता  । । AV12.5.1
 गौ और सच्चा प्रजातंत्रपरिश्रम और तप से प्राप्त होते है जब  ब्रह्माण्ड के  समस्त धन रूपी साधनों और सृष्टि के नियमों के  ज्ञान से उन  का पालन किया जाता है.
2.   सत्येनावृता श्रिया प्रावृता यशसा परीवृता  । ।AV12.5.2
सत्य पर आधारित गोपालनऔर प्रजातंत्र  समाज को (श्री) आश्रय और यश प्रदान करता है.
3.  स्वधया परिहिता श्रद्धया पर्यूढा दीक्षया गुप्ता यज्ञे प्रतिष्ठिता लोको निधनं । । AV12.5.4
गोपालक प्रजा पालक  के संकल्प से श्रद्धा पूर्वक गोसेवा और यज्ञ से सम्मान  पाने वाली गौ अपनी धारणा शक्ति से सुरक्षित संसार  की समस्त धन सम्पदा है. श्रद्धा और समर्पित भावना  से गो सेवा करने पर तथा गौ के समीप यज्ञ करने से गौ अपनी प्रकृति से स्वयं  स्वस्थ रहती है और समाज को स्वस्थ बनाती है. (स्वस्थ गोधन   ही  देश की समस्त धन सम्पदा है ) प्रजा भी राष्ट्र  निर्माण में स्वप्रेरित भूमिका निभाती है.   

4. ब्रह्म पदवायं ब्राह्मणोऽधिपतिः । । AV12.5.4
गौ ही उच्च ज्ञान का संसार  में  मार्ग प्रदर्शित करती  है.
5.  तां आददानस्य ब्रह्मगवीं जिनतो ब्राह्मणं क्षत्रियस्य । ।AV12.5.5
जिस समाज में राजा की व्यवस्था में अच्छी गौओं को  कष्ट मिलता है और  प्रजा की वाणी को अनसुना किया जाता है, वहां गो हत्या से गाय और तानाशाही से राज्य  का  लोप हो जाता  हैं  

6.  अप क्रामति सूनृता वीर्यं पुन्या लक्ष्मीः । । AV12.5.6
ऐसे समाज में प्रिय सत्य वाणी, लक्ष्मी और राष्ट्र बल नहीं रहता.

7.  ओजश्च तेजश्च सहश्च बलं च वाक्चेन्द्रियं च श्रीश्च धर्मश्च । ।AV12.5.7
ओज, तेज, सहनशीलता, बलसुंदर वाणी और शरीर की स्वस्थ इंद्रियों से समाज को श्री अर्थात आश्रय मिलता है और धर्म का पालन होता है.
8. ब्रह्म च क्षत्रं च राष्ट्रं च विशश्च त्विषिश्च यशश्च वर्चश्च द्रविणं च  । ।८ । ।
राज्य और प्रजा को ज्ञान और बल, वर्चस्व-रोग निरोधक  शक्ति  और कार्य साधक धन  समृद्धि  प्राप्त होती है.
9.  आयुश्च रूपं च नाम च कीर्तिश्च प्राणश्चापानश्च चक्षुश्च श्रोत्रं च । । AV12.5.9
दीर्घ  जीवन और सौदर्य, प्रसिद्धि और यश, शुद्ध वातावरण से प्राणापान श्वास लेने से बल की स्थापना और शारीरिक दोष निराकरण की शक्ति , दृष्टि और श्रवण की शक्ति स्थापित होती है ।

10.  पयश्च रसश्चान्नं चान्नाद्यं च र्तं च सत्यं चेष्टं च पूर्तं च प्रजा च पशवश्च । । AV12.5.10
जब गाय की कृपा से औषधि रूप दूध, गौ आधारित कृषि से खाद्यान्न , व्यवहार में सत्यता, पर्यावरण के अनुकूल  आचरण से सब प्राकृतिक कृयाएं समय तथा स्थानानुकूल,समाज के लिए (इष्टं च पूर्तं) आवश्यक भौतिक संसाधन वापी, कूप, तड़ाग जल संसाधन इत्यादि का निर्माण ठीक से  होता है. 


11.  तानि सर्वाण्यप क्रामन्ति ब्रह्मगवीं आददानस्य जिनतो ब्राह्मणं क्षत्रियस्य । । AV12.5.11
परंतु यह सब ऊपर उल्लेख किए उपहार  उस समाज और राज्य से दूर चले  जाते  हैं और वे समाज तथा राजा  नष्ट हो जाते  हैं   जहां परमेश्वर की  दी हुइ गाय का छेदन होता है और प्रजा व ज्ञानी जनों को पीड़ित किया जाता है.

12.  सैषा भीमा ब्रह्मगव्यघविषा साक्षात्कृत्या कूल्बजं आवृता । । AV12.5.12
भौतिक गाय और प्रबुद्ध जनों की मंत्रणा प्रतिबाधित होने पर बड़ा भयंकर रूप ले लेते  हैं . यह राष्ट्र में पाप के बीज को फैलाने  वाले और  भूमि पर दाह  उत्पन्न करने वाले ( समाज को  आग लगाने वाली )   होते हैं । 
13.  सर्वाण्यस्यां घोराणि सर्वे च मृत्यवः । । AV12.5.13
राष्ट्र में सब घोर कर्म होने लगते हैं, सब प्रकार के रोग उठ खड़े  होते हैं।

14.  सर्वाण्यस्यां क्रूराणि सर्वे पुरुषवधाः । । AV12.5.14
सब क्रूर कर्म होने लगते हैं ,समाज में सब ओर से हिंसा होने लगती है ।   
15.  सा ब्रह्मज्यं देवपीयुं ब्रह्मगव्यादीयमाना मृत्योः पद्वीष आ द्यति । । AV12.5.15
इस प्रकार गाय एवं  विद्वत्जनों सत्पुरुषों के विचारों को राज्य बल  के दुरुपयोग से हिंसित कर ने वाले शासन मृत्युपाश में स्वयं बंध जाता है.। प्रजा और गौ पर अत्याचार करने वाला  शासन स्वयं  नष्ट हो जाता है ।  

16.  मेनिः शतवधा हि सा ब्रह्मज्यस्य क्षितिर्हि सा । ।AV12.5.16
गौ और प्रजा की वाणी में सेंकड़ों सम्राज्यों को नष्ट करने वाले वज्र की शक्ति है. वेद ज्ञान के विरुद्ध आचरण के परिणाम स्वरूप निश्चय  ही यह सत्य है।   


17.  तस्माद्वै ब्राह्मणानां गौर्दुराधर्षा विजानता । । AV12.5.17
इस लिए ज्ञानवान इन दोनों - गौ माता और प्रजा के कोप के वज्र  के प्रति संवेदन शील होते हैं ।

18.  वज्रो धावन्ती वैश्वानर उद्वीता । । AV12.5.18
और यह भी जानते  हैं कि यह दोनों  दोनों गौ माता और प्रजा ( कर्मचारी भी ) भय से दौड़ती हुए  वज्र के समान विनाश कारी हैं और प्यार से हाँकी जानेपर (वैश्वानर) विश्व के लिए कल्याण कारी  होते हैं.

19.  हेतिः शफानुत्खिदन्ती महादेवोऽपेक्षमाणा । ।AV12.5.19
अहित होने पर पैर पटकते  हैं  ( गुस्सा दिखाते  हैं  ) और अपेक्षित (इच्छित – desired )  होने पर महादेव के समान सब प्रकार से सुख देते हैं ।

20.  क्षुरपविरीक्षमाणा वाश्यमानाभि स्फूर्जति । । AV12.5.20
अत्याचार होने पर सब ओर सहायता के लि इधर उधर झाँकते  यह छुरे की नोक के समान तीक्ष्ण वज्र होते हैं (विदेशी आतंककारियों  की सेना बन कर  देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए कष्ट बन जाते हैं ) और सहायता के लिए चिल्लाते  हुए यह विनाशकारी बिजली की कड़क के समान हैं (श्रमिकों द्वारा  उद्योगपतियों  की हिंसा हो जाती हैअसंतुष्ट प्रजा द्वारा विध्वंसक तोड़ फोड़ की जाती है )
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Atharv Ved 14.2
1. स्योनाद्‌ योनेरधि बुध्यमानौ हसामुदौ महसा मोदमानौ ।
सुगू सुपुत्रौ सुगृहौ तराथो जीवावुषसो विभाती: ॥ AV 14.2.43
सुखप्रद शय्या से उठते हुए, आनंद चित्त से प्रेम मय हर्ष  मनाते हुए, सुंदर आचरण से युक्त, श्रेष्ठ पुत्रादि संतान ,  उत्तम गौ,  सुख सामग्री से युक्त घर में निवास करते हुए सुंदर प्रकाश युक्त प्रभात वेला का दीर्घायु के लिए सेवन करो. 
2. प्रात: भ्रमण के लाभ 
नवं वसान: सुरभि: सुवासा उदागां जीव उषसो विभाती:  । 
आण्डात्‌ पतत्रीवामुक्षि विश्वस्मादेनसस्परि ॥ AV14.2.44
स्वच्छ नये जैसे आवास और परिधान कपड़े आदि के साथ स्वच्छ वायु में सांस लेने वाला मैं आलस्य जैसी बुरी आदतों से छुट कर, विशेष रूप से सुंदर लगने वाली  प्रात: उषा काल में उठ कर  अपने घर से निकल कर घूमने चल पड़ता हूं जैसे एक पक्षी अपने अण्डे में से निकल कर चल पड़ता है. 
3. प्रात: भ्रमण के लाभ 
शुम्भनी द्यावा पृथिवी अ न्तिसुम्ने महिव्रते । 
आप: सप्त सुस्रुवुदेवीस्ता नो मुञ्चन्त्वंहस: ॥  AV14.2.45
सुंदर प्रकृति ने मनुष्य को सुख देने का एक महाव्रत ले रखा है. उन जनों को जो जीवन में  प्राकृतिक वातावरण के समीप रहते हैं सुख देने के लिए मानव शरीर में  प्रवाहित  होने वाले सात दैवीय जल तत्व हमारे दु:ख रूपि रोगों से छुड़ाते हैं . 
Elements of Nature have avowed to make life comfortable and healthy for the species. Particularly the seven fluids that move around the human anatomy are specifically helped by Nature. Modern science confirms that presence of naturally created ‘Schumann’ electromagnetic field and  negative ions  generated by Nature play very significant roles in maintaining  good physical and mental health of human beings. 
(प्रात: कालीन उषा प्रकृति के सेवन द्वारा सुख देने वाले वे मानव शरीर के सात जल तत्व अथर्व वेद के निम्न मंत्र में बताए गए हैं .
( को आस्मिन्नापो व्यदधाद्‌ विषूवृत: सिन्धुसृत्याय जाता:।
तीव्रा अरुणा लोहिनीस्ताम्रधूम्रा ऊर्ध्वा  अवांची: पुरुषे तिरश्ची: ॥ AV 10.2.11 
(भावार्थ)  परमेश्वर ने मनुष्य में रस रक्तादि के रूप में (सप्तसिंधुओं) सात भिन्न  भिन्न जलों को मानवशरीर में  स्थापित किया है. वे अलग अलग प्रवाहित होते हैं . अतिशय रूप से - अलग अलग नदियों की तरह बहने के लिए उन का निर्माण  गहरे  लाल रंग के, ताम्बे के रंग के, धुएं  के रंग इत्यादि के ये जल (रक्तादि) शरीर में ऊपर नीचे और तिरछे सब ओर आते जाते हैं. 
ये सात जल तत्व आधुनिक शरीर शास्त्र के अनुसार निम्न बताए जाते हैं.
1. मस्तिष्क सुषुम्णा में प्रवाहित होने वाला रस (Cerebra –Spinal Fluid)
2. मुख लाला (Saliva) 
3. पेट के पाचन रस (Digestive juices)
4. क्लोम ग्रन्थि रस जो पाचन में सहायक होते हैं (Pancreatic juices) 
5. पित्त रस ( liver Bile) 
6. रक्त (Blood) 
7. (Lymph ) 
ये सात रस मिल कर सप्त आप:= सप्त प्राण: - 5 ज्ञानेन्द्रियों, 1 मन और 1 बुद्धि का संचालन करते हैं.)

4. भ्रमण में पारस्परिक नमस्कार          
सूर्यायै देवेभ्यो मित्राय वरुणाय च । 
ये भूतस्य प्रचेतसस्तेभ्य इदमकरं नम: ॥ AV14.2.46
सूर्य इत्यादि प्राकृतिक देवताओं को,  सब मिलने वाले मित्रों जनों को  जो सम्पूर्ण भौतिक जगत को प्रस्तुत करते हैं हमारा नमन है. ( भारतीय संस्कृति में प्रात: काल भ्रमण में जितने लोग मिलते हैं उन सब को यथायोग्य नमन करने की परम्परा इसी वेद मंत्र पर आधारित है)
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Duties of a Householder AV 6.122, AV6.123
ऋषि:  -भृगु = जो साधना के  मार्ग पर चलते हुए अपने जीवन को  अधिकाधिकपवित्र बना लेता है तब वह सब धनों का विजेता शक्तिशाली बन कर परम आत्मत्व से सब से सखित्व भाव रखता है.
देवता:- विश्वेदेवा:   
गृहस्थ के दायित्व दान और पञ्चमहायज्ञ परिवार विषय  
अथर्व 6.122,
पञ्च महायज्ञ विषय
यज्ञ का रहस्य: (आचार्य डा. विशुद्धानंद मिश्र की व्याख्या से साभार उद्धरित)   
 वेद धर्मका प्राण हैं और यज्ञ इस की आत्मा है । यज्ञ सर्वधर्म रूप भवन की आधारशिला है ।  यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि  धर्माणि प्रथमान्यासन्‌ – ध्यान यज्ञ से देवताओं ने यज्ञ पुरुष की पूजा की, यज्ञ ही प्रथम धर्म  है ।  प्रजापतिर्वै यज्ञ: ,विष्णु र्वै यज्ञ: –यज्ञ ही  प्रजापति है और यज्ञ ही विष्णु है।वेवेष्टिसर्वं जगत स विष्णु:  - जो अपने अनन्त विस्तार से समस्त जगत को व्याप्त कर रहा है वह विष्णु है । तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्‌ पुरुषं जातमग्रत: – तपस्वी ऋषि मुनियों ने सर्वप्रथम उत्पन्न यज्ञ  पुरुष को अपने हृदय में प्रबुद्ध किया ।
इसीलिए यज्ञ ईश्वर और धर्म का प्रतीक है। समस्त का धारणकर्ता होने के कारणही यज्ञजो प्रजाओं का भरण पोषण व  धारण कराता है यज्ञ धर्म कहलाता है ।
     यज्ञों में मन्त्रों  का विनियोग वेदार्थाधीन  होना चाहिए  
1.   एतं भागं परि ददामि विद्वान्विश्वकर्मन्प्रथमजा ऋतस्य  ।
अस्माभिर्दत्तं जरसः परस्तादछिन्नं तन्तुं अनु सं तरेम  । ।AV6.122.1
Wise man perceives that the bounties provided by Nature from the very beginning are only not be considered as merely rewards earned for his labor but considers himself as a trustee for all the blessings from Almighty to be dedicated for welfare of family and society. Dedication of His bounties ensures that life flows smoothly as normal even when the individuals are past their prime active life to participate in livelihood chores. (This system enables the human society to ensure sustainable happiness. People must dedicate their bounties in welfare and charity of family and society- by performing various Yajnas to protect environments, biodiversity and bring up good well trained progeny.)
संसार का विश्वकर्मा के रूप में परमेश्वर सृष्टि के आरम्भ से ही मानव को अनेक उपलब्धियां प्रदान करता है. बुद्धिमान जन का इस दैवीय कृपा को समाज और परिवार के प्रति समर्पण भाव से देखता है और पञ्च महायज्ञों द्वारा अपना दायित्व निभाता है.    इसी शैलि से सुंस्कृत सुखी समाज का निर्माण होता है. जिस में समाज सुखी और सम्पन्न बनता है. वृद्धावस्था को प्राप्त हुए जन भी आत्म सम्मान से जीवन बिता पाते हैं,पर्यावरण शुद्ध और सुरक्षित होता है.  ( यजुर्वेद का उपदेश“ईशा वास्यमिदँ  सर्वं यत्किञ्च जगत्या जगत्‌” भी यही बताता है कि जो भी जगत में हमारी उपलब्धियां हैं वे सब परमेश्वर की ही हैं. हम केवल प्रतिशासक Trustee हैं,  इस सब का मालिक तो परमेश्वर ही है. और हमारा दायित्व परमेश्वर की  इस देन को संसार, समाज,परिवार  के प्रति अपना दायित्व निभाकर सब की उन्नति को समर्पण करना ही है.)    
 भूत यज्ञ
2.   ततं तन्तुं अन्वेके तरन्ति येषां दत्तं पित्र्यं आयनेन  ।
अबन्ध्वेके ददतः प्रयछन्तो दातुं चेच्छिक्षान्त्स स्वर्ग एव  । ।AV6.122.2
Those who live by the ideals of their virtuous parents and utilize their bounties to dedicate themselves to the cause of providing for the society and environments as also take care and provide good education to their orphaned brothers,  make their own destiny to be part of a happy society and have a happy family life.
जो जन इस संसार में उन को मिली उपलब्धियों को एक यज्ञ का परिणाम मात्र समझते हैं वे (स्वयं इन यज्ञों को करते  हैं ) और सब ऋणों से मुक्त हो जाते हैं .
जो अनाथों के लिए सेवा करते हुए उन्हे समर्थ बनाने के अच्छे प्रयास करते हैं उन का जीवन स्वर्गमय हो जाता है.
अतिथियज्ञ , बलिवैश्वदेव यज्ञ व देवयज्ञ
3.   अन्वारभेथां अनुसंरभेथां एतं लोकं श्रद्दधानाः सचन्ते  ।
यद्वां पक्वं परिविष्टं अग्नौ तस्य गुप्तये दम्पती सं श्रयेथां  । ।AV6.122.3
This is an enjoined duty of the house holders to share with dedication and respectfully their food with guests, in to fire for latently sharing with environments and to the innumerable diverse living creatures. 
दम्पतियों का  (गृहस्थाश्रम में) यह कर्तव्य है कि भोजन बनाते हैं उस को श्रद्धा के साथ अग्नि को गुप्त रूप से पर्यावरण की सुरक्षा, अतिथि सेवा, और और पर्यावरण मे जैव विविधता के संरक्षण मे लगाएं
यज्ञमय जीवन
4.   यज्ञं यन्तं मनसा बृहन्तं अन्वारोहामि तपसा सयोनिः  ।
उपहूता अग्ने जरसः परस्तात्तृतीये नाके सधमादं मदेम  । ।AV6.122.4
By setting an example of following a life devoted earn an honest living and fulfilling one’s duties in performing his duties towards environments, society and family development of an appropriate temperament   takes place. That ensures a peaceful heaven like happy atmosphere in family and off springs that ensures a comfortable life for the old elderly retired persons.
तप ( सदैव कर्मठ बने रहने के स्वभाव से ) और यज्ञ पञ्च महायज्ञ के पालन  करने से उत्पन्न  मानसिकता के विकास द्वारा  जीवन का उच्च श्रेणी का बन जाता  है. ऐसी व्यवस्था में,दु:ख रहित पुत्र पौत्र परिवार और समाज के स्वर्ग तुल्य जिव्वन में मानव की तृतीय जीवन अवस्था (वानप्रस्थ और उपरान्त) हर्ष  से स्वीकृत होती है.
परिवार के प्रति दायित्व (उत्तम सन्तति व्यवस्था)
5.   शुद्धाः पूता योषितो यज्ञिया इमा ब्रह्मणां हस्तेषु प्रपृथक्सादयामि  ।
यत्काम इदं अभिषिञ्चामि वोऽहं इन्द्रो मरुत्वान्त्स ददातु तन्मे  । ।AV6.122.5
Bring up your children to develop virtuous, pure, honest temperaments. Find suitable virtuous husbands for your daughters to marry, in order that they in their turn bring up good virtuous progeny for sustaining a good society.
पुत्रियों का  शुद्ध पवित्र पालन कर के  उत्तम ब्राह्मण गुण युक्त वर खोज कर उन से पाणिग्रहण संस्कार करावें. (जिस से समाज का) इंद्र गुण वाली और ( मरुत्वान्‌ -स्वस्थ जीवन शैलि वाली विद्वान) संतान की वृद्धि  हो. (इस मंत्र में वेद भारतीय परम्परा में संतान को ब्रह्मचर्य  पालन और उच्च शिक्षा के साथ स्वच्छ पौष्टिक आहार के  संस्कार दे कर ,अपने समय पर विवाहोपरांत  स्वयं गृहस्थ आश्रम में प के स्वस्थ विद्वान संतति से समाज  कि व्यवस्था का निभाने का दायित्व  बताया है.  




AV6.123
1.   एतं सधस्थाः परि वो ददामि यं शेवधिं आवहाज्जातवेदः  ।
अन्वागन्ता यजमानः स्वस्ति तं स्म जानीत परमे व्योमन् । ।AV6.123.1
Creation of wealth is made possible by excellent knowledge and contribution of efforts by the society. It is imperative that the individuals in control of the wealth are duty bound to ensure that all wealth and knowledge are  used in the welfare of the entire creation and that creates heaven on earth..
समस्त धन ऐश्वर्य वेदोक्त ज्ञान और सब के सहयोग का फल है ।  धन और ज्ञान के  कोष  का  समस्त संसार के कल्याण में उपयोग  करने से ही भूमि पर स्वर्ग स्थापित होता है ।
2.   जानीत स्मैनं परमे व्योमन्देवाः सधस्था विद लोकं अत्र  ।
अन्वागन्ता यजमानः स्वस्तीष्टापूर्तं स्म कृणुताविरस्मै  । ।AV6.123.2
(जानीत स्मैनं परमे व्योमन्देवाः सधस्था विद लोकं अत्र) यहां यह निश्चित रूप से जानो कि जब इस संसार में विद्वान लोग एक दूसरे के सहायक बन कर कल्याणकारी कार्यों से स्वर्ग स्थापित करते हैं, जब  (यजमान: स्वस्ति अनु  आगन्ता ) – यज्ञशील पुरुष अधिक से भी अधिक कल्याण कारी सुख प्राप्त करते हैं , जब वे (अस्मै इष्टापूर्तम्‌ आवि: कृणोतु)  – इस कल्याण प्रप्ति के लिए लोक हित कार्यों को पूर्ण करने  में अपना अपना निजी कर्तव्य निभाते  हैं । 
This is a fact that when all people engage collectively in carrying out their individual duties and tasks in the interest of community that fulfill the needs felt by the community welfare of all creates heaven on earth.
3.   देवाः पितरः पितरो देवाः  ।यो अस्मि सो अस्मि  । ।AV6.123.3
देवता स्वरूप मनुष्य दूसरों के संरक्षण भरण पोषण में अपना दायित्व कर्तव्य निभाते  हैं जैसे पितर माता पिता संतान के प्रति, इसी प्रकार जो समाज के संरक्षण, भरण पोषण में सेवा कार्य करते  हैं वे देवता स्वरूप  ही होते हैं।
The enlightened persons engage themselves in positive actions that provide for and protect others, just as parents do for their children. Also those who provide for and help others by protecting them are enlightened people.

4.    स पचामि स ददामि  ।स यजे स दत्तान्मा यूषं  । ।AV6.123.4
Dedicate and give away all that you produce and work for. Never forsake the principle of dedicating to giving away all that you produce.
(This Ved mantra contains a very important message for any society. Every one engaging himself in any task such as being self employed or otherwise in an office or industry must realize and appreciate that his entire work is a service towards the large community, society and nation. That he is engaged in his work not for earning his personal livelihood but for making his contribution towards welfare of all. And in return he is getting his share for his services thus rendered. (This is where the Vedic ideal of enshrined in Ashtang Yog of Yam and Niyam comes in to play for a stable strife /conflict free society. The non ostentatious simple  life style promoted for all should be such as everyone is able to live , irrespective of the work being performed by him. There should be little gap in the visible life style of rich and poor.
Gandhi ji called it as a self chosen lifestyle of simple living as a poor.
Inefficiency, trade union conflicts between employees and employers would vanish In modern industries and offices if employees are made to realize that they are to perform their duties as service and in larger cause of society . And the bosses, the employers in charge of the wealth and power are made to realize that they   trustees of the wealth and should make it available for welfare of all.
In the past under this Vedic directive kings and wealthy persons used to dedicate and donate all their extra wealth at the feet of divinities in the temples. Temples were expected to promote actions to build the society by promoting character building by education, study of Vedas, enabling skills and norms of good cows, agriculture, social community services etc. When over a period of time our temples no longer carried out these functions properly by utilizing the donations received by them, vast landed properties, wealth and gold started accumulating in the temples. This attracted hordes of foreign marauding invaders to mount regular periodic attacks on our temples to repeatedly raid India to plunder and loot our temples, destroy any resistance offered take slaves of our men and abduct our women. In fact the intervals between attacks on India by Mahmud Gazanavi and Mohammed Ghori gave them a very good estimate of the annual income generated in India by the areas commanded by different temples. The amount of annual tributes fixed for various Muslim governors that were appointed by them after wards was  based on the estimates of the income generation in the respective provinces.
Thus inaction by non performance by our temples of their duties in using temple wealth for service of the society was the main cause for downfall of our great nation.
And the greatest reformer of India in modern age, Swami Dayanand Saraswati had to point out that Idolatry that had led to establishment of these temples as institutions to become huge sources of power and wealth were  the main cause of decline of our society.)
5.   नाके राजन्प्रति तिष्ठ तत्रैतत्प्रति तिष्ठतु  ।
विद्धि पूर्तस्य नो राजन्त्स देव सुमना भव  । ।AV6.123.5
इस प्रकार प्रशस्त मन वाला , दीप्त जीवन वाला साधक राजा इत्यादि जन वेदों के उपदेश आधारित यज्ञादि उत्तम कर्मों के द्वारा सुखमय लोक (स्वर्ग)  में प्रतिष्ठित होते  हैं . 
Thus enlightened persons and kings , perform various yajnas  according to Vedic wisdom and establish heaven on earth by providing happy life for everybody. 

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